Deepak Dobhal
- 8 Posts
- 10 Comments
छांव है ये धूप से बनी
घूप वो जिसने तन को जला दिया
छांव है ये मन के आंगन का
जिसने जलते तन को बूझा दिया
उजले फूलों पर जो काली स्याही पोती
फूलों को खिलने से पहले ही मूरझा दिया
छांव है ये उसी पेड़ की
जिसने मूरझे फूलों को फिर से महका दिया
छांव है मन के आंगन का
जिसने जलते तन को बूझा दिया
पेड़ था एक
जिसकी जड़ो को जहर से सींचा गया
जहर पीकर भी वो पनप गया
छांव है उसी पेड़ की
जिसकी शाखाओं को काटा गया
छांव हे मन के आंगन का
जिसने जलते तन को बूझा दिया
सूरज तो सबका है
फिर क्यों उसकी धूप में कोई जल गया
चांद सा चेहरा तो सबका है
फिर क्यों किसी में दाग लग गया
छांव है उस रोशनी की
जिसने सारे अंधियारे को मिटा दिया
छांव है ये मन के आंगन का
जिसने जलते तन को बूझा दिया
Read Comments